मेरे लिए दुनिया के क़ज़ाया को बनाया
तेरे लिए आसाइश-ए-दुनिया को बनाया
मज़रूफ़ से तक़दीम कहाँ ज़र्फ़ ने पाई
दिल बा'द बना पहले तमन्ना को बनाया
होता चला आता है ज़माना तह-ओ-बाला
आ'ला को बिगाड़ा कभी अदना को बनाया
मयख़ाना-ए-दुनिया में है इफ़रात-ए-मय-ए-इ'ज्ज़
झुकने के लिए गर्दन-ए-मीना को बनाया
है गुफ़्त-ओ-शुनीद ऐसे से ऐ 'रश्क' कि जिस ने
गोश-ए-शुनवा-ओ-लब-ए-गोया को बनाया
ग़ज़ल
मेरे लिए दुनिया के क़ज़ाया को बनाया
मीर अली औसत रशक