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मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं | शाही शायरी
mere KHurshid o qamar aae nahin

ग़ज़ल

मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं

ज़मीर अज़हर

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मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं
ज़ुल्मतों के चारा-गर आए नहीं

फ़स्ल-ए-गुल की ख़ासियत को क्या हुआ
शाख़-ए-दिल पर बर्ग-ओ-बर आए नहीं

ख़स्ता-सामानी हमारी देखने
लोग आते थे मगर आए नहीं

मैं फ़क़त बाग़ों का रखवाला रहा
मेरे हिस्से में समर आए नहीं

गदले जोहड़ चीथडों सी बस्तियाँ
अहल-ए-दिल क्या इस नगर आए नहीं