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मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की | शाही शायरी
mere karobar mein sab ne baDi imdad ki

ग़ज़ल

मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की

राहत इंदौरी

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मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की
दाद लोगों की गला अपना ग़ज़ल उस्ताद की

अपनी साँसें बेच कर मैं ने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की

उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
ज़िंदगी को ढूँडने में ज़िंदगी बर्बाद की

दास्तानों के सभी किरदार कम होने लगे
आज काग़ज़ चुनती फिरती है परी बग़दाद की

इक सुलगता चीख़ता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो 'यगाना' किस अमीनाबाद की