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मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे | शाही शायरी
mere ham-nafas mere ham-nawa mujhe dost ban ke dagha na de

ग़ज़ल

मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे

शकील बदायुनी

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मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे

My companion, my intimate, be not a friend and yet betray
The pain of love is fatal now, for my life please do not pray

मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी
मुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे

The fire of this heart gives light, this light gives me sustenance
I am afraid o healer mine, this lamp you may snuff away

मुझे छोड़ दे मिरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारा-गर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मिरा दर्द और बढ़ा न दे

Leave me to my present state, I do not trust your medicine
Your mercy minor though may be,might increase my pain today

मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शो'लों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे

My confidence in self is strong, I'm unafraid of foreign flames
I'm scared those sparks may ignite, that in the blossom's bosom lay

वो उठे हैं ले के ख़ुम-ओ-सुबू अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तिरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे

She rises with the flask and cup, o shakeel where have you gone
That cup which is yours perchance, someone else might take away