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मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे | शाही शायरी
mere alfaz mein asar rakh de

ग़ज़ल

मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे

शीन काफ़ निज़ाम

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मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे
सीपियाँ हैं तो फिर गुहर रख दे

बे-ख़बर की कहीं ख़बर रख दे
हासिल-ए-ज़हमत-ए-सफ़र रख दे

मंज़िलें भर दे आँख में उस की
उस के पैरों में फिर सफ़र रख दे

चंद-लम्हे कोई तो सुस्ता ले
राह में एक दो शजर रख दे

गर शजर में समर नहीं मुमकिन
उस में साया ही शाख़-भर रख दे

कल के अख़बार में तू झूटी ही
एक तो अच्छी सी ख़बर रख दे

तू अकेला है बंद है कमरा
अब तो चेहरा उतार कर रख दे