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मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं | शाही शायरी
mera shikwa teri mahfil mein adu karte hain

ग़ज़ल

मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं

ऐश देहलवी

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मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं
उस पे भी सब्र हम ऐ अरबदा-जू करते हैं

मश्क़-ए-बेदाद-ओ-सितम करते हैं गर वो तो यहाँ
हम भी बेदाद ओ सितम सहने की ख़ू करते हैं

जाँ हुई है निगह-ए-नाम पे उन की आशिक़
चाक दिल तार-ए-नज़र से जो रफ़ू करते हैं

बे-सबाती चमन-ए-दहर की है जिन पे खुली
हवस-ए-रंग न वो ख़्वाहिश-ए-बू करते हैं

आज शमशीर ब-कफ़ निकले हैं वो देखिए तर
आब-ए-शमशीर से किस किस के गुलू करते हैं

है रची जिन के दिमाग़ों में तिरी ज़ुल्फ़ की बू
अम्बर ओ मुश्क की कब बू को वो बू करते हैं

मुश्क ओ अम्बर का उन्हें नाम भी लेना है नंग
यार की ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर को जो बू करते हैं

चाक करते हैं गरेबाँ को वहशत में कभी
चाक-ए-दिल में कभू नाख़ुन को फ़रू करते हैं

देख सौदा-जादा-ए-उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ ऐ 'ऐश'
वादी-ए-इश्क़ में क्या क्या तग-ओ-पू करते हैं