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मेरा साया है मिरे साथ जहाँ जाऊँ मैं | शाही शायरी
mera saya hai mere sath jahan jaun main

ग़ज़ल

मेरा साया है मिरे साथ जहाँ जाऊँ मैं

सुलैमान अरीब

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मेरा साया है मिरे साथ जहाँ जाऊँ मैं
बेबसी तू ही बता ख़ुद को कहाँ पाऊँ मैं

बे-घरी मुझ से पता पूछ रही है मेरा
दर-ब-दर पूछता फिरता हूँ कहाँ जाऊँ मैं

ज़ख़्म की बात भी होती तो कोई बात न थी
दिल नहीं फूल कि हर शख़्स को दिखलाऊँ मैं

ज़िंदगी कौन से ना-कर्दा गुनह की है सज़ा
ख़ुद नहीं जानता क्या औरों को बतलाऊँ मैं

एक हम्माम में तब्दील हुई है दुनिया
सब ही नंगे हैं किसे देख के शरमाऊँ मैं