EN اردو
मेरा मस्लक है मोहब्बत दोस्ती शेवा मिरा | शाही शायरी
mera maslak hai mohabbat dosti shewa mera

ग़ज़ल

मेरा मस्लक है मोहब्बत दोस्ती शेवा मिरा

मंसूर ख़ुशतर

;

मेरा मस्लक है मोहब्बत दोस्ती शेवा मिरा
मेरी मंज़िल भी यही है और यही रस्ता मिरा

क्यूँ किसी से कुछ बयाँ करता भी मैं रूदाद-ए-ग़म
हाल-ए-दिल का आइना भी मेरा है चेहरा मिरा

अपनी वज़्अ'-दारी ने होने दिया रुस्वा नहीं
गो रहा महरूमियों से उम्र-भर रिश्ता मिरा

आबला-पाई से कब सहरा-नवर्दी रुक सकी
इक रफ़ीक़-ए-राह की सूरत है ज़ख़्म-ए-पा मिरा

दोस्तों को हो मुबारक भी फ़ज़ा-ए-गुलिस्ताँ
राह कब से देखता है दामन-ए-सहरा मिरा

वज़्अ'-दारी दोस्तों से हो सकी इतनी नहीं
दुश्मनों में रात-दिन तो होता है चर्चा मिरा

आप ही ने तो मोहब्बत से कहा था एक दिन
आशिक़-ए-जाँ-बाज़ है 'ख़ुशतर' फ़क़त तन्हा मिरा