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मेरा ख़त लिख के बुलाना उसे अच्छा न लगा | शाही शायरी
mera KHat likh ke bulana use achchha na laga

ग़ज़ल

मेरा ख़त लिख के बुलाना उसे अच्छा न लगा

अम्बर वसीम इलाहाबादी

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मेरा ख़त लिख के बुलाना उसे अच्छा न लगा
इस तरह प्यार जताना उसे अच्छा न लगा

कह के ठोकर वो तो राहों में गिरा था लेकिन
मेरा यूँ हाथ बढ़ाना उसे अच्छा न लगा

रहने वाली थी वो महलों की इसी की ख़ातिर
मेरा छोटा सा ठिकाना उसे अच्छा न लगा

सुन लिया पहले तो हँस हँस के फ़साना 'अम्बर'
फिर ये बोली ये फ़साना उसे अच्छा न लगा