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में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा | शाही शायरी
mein mahfil-e-hayat mein hairan sa raha

ग़ज़ल

में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा

अख़लाक़ अहमद आहन

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में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा
हर एक की निगाह में अंजान सा रहा

कुछ कर सका न शाम तलक राह-ए-शौक़ में
हर पल हर एक गाम पे बे-जान सा रहा

पलकें उठा के देख सका मैं न एक बार
मेरा ख़िरद जुनूँ का निगहबान सा रहा

राह-ए-हयात में न मिली एक पल ख़ुशी
ग़म का ये बोझ दोश पे सामान सा रहा

बू-ए-गुल-ओ-समन की तरह इस जहान में
'आहन' तमाम उम्र परेशान सा रहा