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में ऐसा ज़ौक़-ए-ज़ेबाइश ब-रू-ए-कार ले आया | शाही शायरी
mein aisa zauq-e-zebaish ba-ru-e-kar le aaya

ग़ज़ल

में ऐसा ज़ौक़-ए-ज़ेबाइश ब-रू-ए-कार ले आया

नसीम अब्बासी

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में ऐसा ज़ौक़-ए-ज़ेबाइश ब-रू-ए-कार ले आया
कि ख़ुद-आराई की ख़ातिर लिबास-ए-दार ले आया

ज़मीं की मिहवरी गर्दिश से उम्रें घटती बढ़ती हैं
गुज़रता वक़्त साए को पस-ए-दीवार ले आया

मगर मुझ को ये एहसास-ए-नदामत मार डालेगा
पराए पेड़ से फल तोड़ कर दो चार ले आया

ये सारे लोग उस के हक़ में राय देने वाले हैं
वो अपनी सारी तस्वीरें सर-ए-बाज़ार ले आया

जहाँ से वापसी का रास्ता क़िस्मत से मिलता है
वहाँ तक क़ाफ़िले को क़ाफ़िला-सालार ले आया

विरासत में 'नसीम' इस से बड़ी जागीर क्या होगी
मैं दिल की धड़कनों में अपनी माँ का प्यार ले आया