EN اردو
मेहरबाँ हम पे जो तक़दीर हमारी होगी | शाही शायरी
mehrban hum pe jo taqdir hamari hogi

ग़ज़ल

मेहरबाँ हम पे जो तक़दीर हमारी होगी

क़तील शिफ़ाई

;

मेहरबाँ हम पे जो तक़दीर हमारी होगी
आप की ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर हमारी होगी

उम्र-भर आप ही देखेंगे कोई ख़्वाब-ए-तरब
लेकिन उस ख़्वाब की ता'बीर हमारी होगी

आज की रात है इरफ़ान-ए-हिजाबात की रात
आज हर शम्अ' में तनवीर हमारी होगी

आज फिर वस्ल के उड़ते हुए लम्हे सुन लें
वक़्त के पावँ में ज़ंजीर हमारी होगी

कुछ भी हो आप के माहौल का मेआ'र-ए-हयात
आप के ज़ेहन में तस्वीर हमारी होगी

तोहमतों से हमें देगा ये जहाँ दाद-ए-वफ़ा
अब इसी ढंग से तौक़ीर हमारी होगी

एक उनवाँ में सिमट आएँगे सौ नाम 'क़तील'
दास्ताँ जब कोई तहरीर हमारी होगी