EN اردو
मेहराब-ए-ख़ुश-क़याम से आगे निकल गई | शाही शायरी
mehrab-e-KHush-qayam se aage nikal gai

ग़ज़ल

मेहराब-ए-ख़ुश-क़याम से आगे निकल गई

लियाक़त अली आसिम

;

मेहराब-ए-ख़ुश-क़याम से आगे निकल गई
ख़ुशबू दिए की शाम से आगे निकल गई

ग़ाफ़िल न जानिए मुझे मसरूफ़-ए-जंग हूँ
उस चुप से जो कलाम से आगे निकल गई

तुम साथ हो तो धूप का एहसास तक नहीं
ये दोपहर तो शाम से आगे निकल गई

मरने का कोई ख़ौफ़ न जीने की आरज़ू
क्या ज़िंदगी दवाम से आगे निकल गई

'आसिम' वो कोई दोस्त नहीं था जो ठहरता
दुनिया थी अपने काम से आगे निकल गई