मज़मून-ए-इश्क़ ज़ेहन-ए-सितमगर में आ गया
दरिया सिमट के हल्क़ा-ए-साग़र में आ गया
हंगाम-ए-ज़ब्ह जिस्म ने गुस्ताख़ियाँ जो कीं
धब्बा लहू का दामन-ए-ख़ंजर में आ गया
आ निकले तेरे सामने क्या पूछता है यार
कुछ उस घड़ी यही दिल-ए-मुज़्तर में आ गया
उस सर्व-क़द के क़ामत-ए-मौज़ूँ को देख कर
ख़ुम ऐ 'शगुफ़्ता' नख़्ल-ए-सनोबर में आ गया
ग़ज़ल
मज़मून-ए-इश्क़ ज़ेहन-ए-सितमगर में आ गया
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता