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मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना | शाही शायरी
maut se aage soch ke aana phir ji lena

ग़ज़ल

मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना

अब्दुल अहद साज़

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मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना
छोटी छोटी बातों में दिलचस्पी लेना

नर्म नज़र से छूना मंज़र की सख़्ती को
तुंद हवा से चेहरे की शादाबी लेना

जज़्बों के दो घूँट अक़ीदों के दो लुक़्मे
आगे सोच का सहरा है कुछ खा पी लेना

महँगे सस्ते दाम हज़ारों नाम ये जीवन
सोच समझ कर चीज़ कोई अच्छी सी लेना

आवाज़ों के शहर से बाबा क्या मिलना है
अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी लेना

दिल पर सौ राहें खोलीं इंकार ने जिस के
'साज़' अब उस का नाम तशक्कुर से ही लेना