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मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ | शाही शायरी
maut ko zist tarasti hai yahan

ग़ज़ल

मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

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मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ
मौत ही कौन सी सस्ती है यहाँ

दम की मुश्किल नहीं आसाँ करते
किस क़दर उक़्दा-परस्ती है यहाँ

सब ख़राबे हैं तमन्नाओं के
कौन बस्ती है जो बस्ती है यहाँ

छोड़ो बे-सर्फ़ा हैं सावन भादों
देखो हर आँख बरसती है यहाँ

अब तो हर औज का तारा डूबा
औज का नाम ही पस्ती है यहाँ