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मौत की सम्त जान चलती रही | शाही शायरी
maut ki samt jaan chalti rahi

ग़ज़ल

मौत की सम्त जान चलती रही

फ़हमी बदायूनी

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मौत की सम्त जान चलती रही
ज़िंदगी की दुकान चलती रही

सारे किरदार सो गए थक कर
बस तिरी दास्तान चलती रही

मैं लरज़ता रहा हदफ़ बन कर
मश्क़-ए-तीर-ओ-कमान चलती रही

उल्टी सीधी चराग़ सुनते रहे
और हवा की ज़बान चलती रही

दो ही मौसम थे धूप या बारिश
छतरियों की दुकान चलती रही

जिस्म लम्बे थे चादरें छोटी
रात भर खींच-तान चलती रही

पर निकलते रहे बिखरते रहे
ऊँची नीची उड़ान चलती रही