मौत ही एक दवा है और वो जारी है
हम को ज़िंदा रहने की बीमारी है
सिर्फ़ उदास रहोगे गर तुम सच्चे हो
बाक़ी हर जज़्बा-ए-मश्क़ फ़नकारी है
अंदर अंदर दर-ब-दरी ही दर-ब-दरी
बाहर बाहर ख़ूब दर-ओ-दीवारी है
जिस्म बहुत भारी हैं शहर के लोगों के
जिस्मों में दिल हैं तो और भी भारी हैं
दरिया में साहिल हैं दख़्ल-अंदाज़ बहुत
दरिया बेचारा क्या है बस जारी है
मैं तो अपने आप से आरी हूँ कब से
फिर ये किस के होने की तय्यारी है
शेर में एक ज़रा सा होता है इल्हाम
उस के बा'द तो जो कुछ है फ़नकारी है
फ़नकारी तो ऐरे-ग़ैरे भी कर लें
असलन तो इल्हाम में ही दुश्वारी है
जिस्म उड़ा फिरता है वही बाज़ारों में
रूह वही मसरूफ़-ए-ख़ाना-दारी है
चेहरा अभी तक है ख़ाना-आबाद मिरा
उस के मुक़ाबिल आईना-बाज़ारी है
कासा-ए-जिस्म बना बैठा है जब देखो
ये फ़रहत-एहसास अजीब भिकारी है
ग़ज़ल
मौत ही एक दवा है और वो जारी है
फ़रहत एहसास