मौत आएगी जो रुस्वाई का सामाँ होगा
चाक दिल होगा अगर चाक गरेबाँ होगा
दिल को बहलाता हूँ ये कह के तिरी फ़ुर्क़त में
पर्दा-ए-ग़ैब से ख़ुद वस्ल का सामाँ होगा
हश्र में देखेंगे रहमत का तमाशा ज़ाहिद
जब ख़तावार ख़ताओं पे पशेमाँ होगा
मलक-उल-मौत को भी साथ गुल अपने लाना
मुझ पे एहसान तेरा ऐ शब-ए-हिज्राँ होगा
रहनुमाई रह-ए-उल्फ़त में जो ऐ ख़िज़्र करे
वो फ़रिश्ता तो नहीं मुझ सा ही इंसाँ होगा
हम न कहते थे कि है होश-रुबा हुस्न तिरा
आइना देख न तू देख के हैराँ होगा
मुझ से कहती है शब-ए-वस्ल परेशाँ-नज़री
आप के दिल में भी शायद कोई अरमाँ होगा
कू-ए-जानाँ की हवस तुझ को बहुत है ऐ 'शाद'
ख़ाक के ज़र्रों की मानिंद परेशाँ होगा

ग़ज़ल
मौत आएगी जो रुस्वाई का सामाँ होगा
मुर्ली धर शाद