मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
ऐ दोस्त हमारे आँगन में रहती है हमेशा ज़र्द हवा
सब अपने शनासा छोड़ गए रस्ते में हमें ग़ैरों की तरह
चेहरे पे हमारे डाल गई ला कर ये कहाँ की गर्द हवा
छूटे न कभी फूलों का नगर कोशिश तो यही है अपनी मगर
इक रोज़ उड़ा ले जाएगी पत्तों की तरह बे-दर्द हवा
क्या बात हुई क्यूँ शहर जला अब इस के सिवा कुछ याद नहीं
इक फ़र्द सरापा आग हुआ पल-भर में हुआ इक फ़र्द हवा
आई है घने जंगल में अभी जो खेल भी चाहे खेले मगर
कल मेरे साथ उड़ाएगी फिर सहरा सहरा गर्द हवा
आँखों की चमक मौहूम हुई लौ देते बदन अफ़्सुर्दा हुए
दर आई है 'क़ैसर' घर में मिरे ये कैसी रुतों की सर्द हवा
ग़ज़ल
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
क़ैशर शमीम