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मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया | शाही शायरी
mausam-e-gul bhi mere ghar aaya

ग़ज़ल

मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया

रशीद कामिल

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मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया
जाने वाला न पलट कर आया

आज यूँ दिल ने बहाए आँसू
आँख से अश्क न बाहर आया

लुट गई ज़ब्त की बस्ती आख़िर
तेरी यादों का जो लश्कर आया

आँख अब तेरी जुदाई पे खुली
होश में तुझ को गँवा कर आया

एक ही नक़्श में थे नक़्श तमाम
सामने फिर न वो मंज़र आया

धूप में उस की मोहब्बत का ख़याल
अब्र जैसे मिरे सर पर आया

काले दरिया तो किए कितने उबूर
राह में अब के समुंदर आया

कौन करता मिरी राहें दुश्वार
आड़े आया तो मुक़द्दर आया

उस ने फेंका था अगर फूल 'रशीद'
फिर ये किस सम्त से पत्थर आया