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मौसम भी ख़ुश-गवार ज़माना भी रास है | शाही शायरी
mausam bhi KHush-gawar zamana bhi ras hai

ग़ज़ल

मौसम भी ख़ुश-गवार ज़माना भी रास है

शेवन बिजनौरी

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मौसम भी ख़ुश-गवार ज़माना भी रास है
लेकिन तिरे बग़ैर मिरा जी उदास है

ऐ हुस्न-ए-पुर-हिजाब ज़रा सामने तो आ
इन तिश्ना-लब निगाहों को जल्वे की आस है

अर्सा हुआ है तर्क-ए-मोहब्बत किए हुए
फिर भी न जाने क्यूँ तेरे मिलने की आस है

कहते हैं किस को इश्क़ मुझे ये ख़बर नहीं
इक मीठा मीठा दर्द मेरे दिल के पास है

यूँ तो बहुत हैं दुनिया में ज़ी-रूह हस्तियाँ
बस आदमी वही है कि जो ग़म-शनास है

बस आप का ही नाम है विर्द-ए-ज़बाँ हुज़ूर
ये सारी ज़िंदगी का मेरी इक़्तिबास है

'शेवन' ये इज़्तिराब-ए-मोहब्बत का है करम
दिल क्या उदास सारा ज़माना उदास है