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मौजूद थे अभी अभी रू-पोश हो गए | शाही शायरी
maujud the abhi abhi ru-posh ho gae

ग़ज़ल

मौजूद थे अभी अभी रू-पोश हो गए

जलील मानिकपूरी

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मौजूद थे अभी अभी रू-पोश हो गए
ऐ मस्त-ए-नाज़ तुम तो मिरे होश हो गए

सोते में वो जो मुझ से हम-आग़ोश हो गए
जितने गिले थे ख़्वाब-ए-फ़रामोश हो गए

वादे की रात आई क़ज़ा इस अदा के साथ
धोके में तेरे उस से हम-आग़ोश हो गए

बरसों हुए न तुम ने किया भूल कर भी याद
वादे की तरह हम भी फ़रामोश हो गए

आँखों में भी जो आए तो अल्लाह-रे हिजाब
बन कर नज़र नज़र से वो रू-पोश हो गए

क्या क्या ज़बाँ-दराज़ चराग़ अंजुमन में थे
दामन-कशाँ तुम आए तो ख़ामोश हो गए

यारान-ए-रफ़ता बात का देते नहीं जवाब
क्या कह दिया फ़ज़ा ने कि ख़ामोश हो गए

आई शब-ए-विसाल तो नींद आ गई उन्हें
हम होश में जो आए वो मदहोश हो गए

मर कर तमाम सर से टलीं आफ़तें 'जलील'
हम जान दे के सब से सुबुक-दोश हो गए