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मौजूद जो था मादूम समझ में आया | शाही शायरी
maujud jo tha madum samajh mein aaya

ग़ज़ल

मौजूद जो था मादूम समझ में आया

कृष्ण कुमार तूर

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मौजूद जो था मादूम समझ में आया
इक उल्टा ही मफ़्हूम समझ में आया

मैं जब पेड़ से गिर के ज़मीं की ख़ाक हुआ
तब इक आलम-ए-मौहूम समझ में आया

मैं ही मैं हूँ आँख उठती है जिधर भी अब
ना-मालूम भी मालूम समझ में आया

उल्टे मंतर ही शायद मैं पढ़ता हूँ
जो ज़ाहिर था मादूम समझ में आया

ज़ीस्त को मैं इक आब-ए-रवाँ कहता हूँ 'तूर'
क्या तुम को ये मफ़्हूम समझ में आया