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मौज-ए-ख़ूँ जोश में थी अपने क़दम से पहले | शाही शायरी
mauj-e-KHun josh mein thi apne qadam se pahle

ग़ज़ल

मौज-ए-ख़ूँ जोश में थी अपने क़दम से पहले

मूसा रज़ा

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मौज-ए-ख़ूँ जोश में थी अपने क़दम से पहले
कोई आया था यहाँ दश्त में हम से पहले

तूर बे-नूर था मूसा के क़दम से पहले
किस ने देखा है तिरे हुस्न को हम से पहले

ख़ैर गुज़री कि जुनूँ वक़्त पे काम आ ही गया
संग-ए-दर मिल गया मेहराब-ए-हरम से पहले

हम भी कंधों पे उठा लाएँगे मक़्तल में सलीब
कुछ इशारा तो मिले अहल-ए-करम से पहले

तिश्नगी-ए-लब-ए-असग़र का तक़ाज़ा था 'रज़ा'
वर्ना तलवार उठाते न क़लम से पहले