EN اردو
मौज-ए-अन्फ़ास भी इक तेग़-ए-रवाँ हो जैसे | शाही शायरी
mauj-e-anfas bhi ek tegh-e-rawan ho jaise

ग़ज़ल

मौज-ए-अन्फ़ास भी इक तेग़-ए-रवाँ हो जैसे

हबीब अशअर देहलवी

;

मौज-ए-अन्फ़ास भी इक तेग़-ए-रवाँ हो जैसे
ज़िंदगी कार-गह-ए-शीशा-गराँ हो जैसे

दिल पे यूँ अक्स-फ़गन है कोई भूली हुई याद
सर-ए-कोहसार धुँदलके का समाँ हो जैसे

हासिल-ए-उम्र-ए-वफ़ा है बस इक एहसास-ए-यक़ीं
वो भी परवर्दा-ए-आग़ोश-ए-गुमाँ हो जैसे

मुझ से वो आँख चुराता है तो यूँ लगता है
सारी दुनिया मिरी जानिब निगराँ हो जैसे

आज 'अशअ'र' से सर-ए-राह मुलाक़ात हुई
कोई दरमाँदा-ए-दिल शो'ला-ब-जाँ हो जैसे