मतलब मुआ'मलात का कुछ पा गया हूँ मैं
हँस कर फ़रेब-ए-चश्म-ए-करम खा गया हूँ मैं
बस इंतिहा है छोड़िए बस रहने दीजिए
ख़ुद अपने ए'तिमाद से शर्मा गया हूँ मैं
साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
कम्बख़्त होश में तो नहीं आ गया हूँ मैं
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं
क्या अब हिसाब भी तू मिरा लेगा हश्र में
क्या ये इ'ताब कम है यहाँ आ गया हूँ मैं
मैं इश्क़ हूँ मिरा भला क्या काम दार से
वो शरअ' थी जिसे वहाँ लटका गया हूँ मैं
निकला था मय-कदे से कि अब घर चलूँ 'अदम'
घबरा के सू-ए-मय-कदा फिर आ गया हूँ मैं
ग़ज़ल
मतलब मुआ'मलात का कुछ पा गया हूँ मैं
अब्दुल हमीद अदम