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मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है | शाही शायरी
mata-e-dard ka KHugar meri talash mein hai

ग़ज़ल

मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है

हैदर अली जाफ़री

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मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है
किसी का भेजा पयम्बर मिरी तलाश में है

हूँ मैं ही नुक़्ता-ए-आग़ाज़ इख़्तिताम-ए-हिसार
हर इक हिसार का मेहवर मिरी तलाश में है

मिली है औज ख़ुदी को यक़ीन-ए-मोहकम से
सुना है मर्ज़ी-ए-दावर मिरी तलाश में है

वो एक सई जिसे कहते हैं हम सभी इदराक
वो मेरे जिस्म के अंदर मिरी तलाश में है

सभी तो दोस्त हैं क्यूँ शक अबस हुआ मुझ को
किसी के हाथ का पत्थर मिरी तलाश में है

मिरे ख़ुदा मैं हूँ तुझ से पनाह का तालिब
मिरे गुनाहों का लश्कर मिरी तलाश में है

मिरे ही लम्स से ग़ुंचों ने पाई शादाबी
चमन में खिलता गुल-ए-तर मिरी तलाश में है

कहीं से सुन लिया है मेरी प्यास का चर्चा
तभी से प्यासा समुंदर मिरी तलाश में है

लगा है सोचने अहद-ए-रवाँ का 'मरहब' भी
बचूँगा किस तरह 'हैदर' मिरी तलाश में है