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मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ | शाही शायरी
mat samajhna ki sirf tu hai yahan

ग़ज़ल

मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ

वाजिद अमीर

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मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ
एक से एक ख़ूब-रू है यहाँ

पुर है बाज़ार-ए-हुसन चेहरों से
जाने किस किस की आबरू है यहाँ

कैसे आबाद हो ये वीराना
वहशत-ए-किज़्ब चार-सू है यहाँ

आँख की पुतलियों को ग़ौर से देख
तेरी तस्वीर हू-ब-हू है यहाँ

कैसे तारीख़ लिक्खी जाएगी
सिर्फ़ तलवार और गुलू है यहाँ

तू कहाँ है ख़बर नहीं ऐ दोस्त
रात दिन तेरी गुफ़्तुगू है यहाँ

झाँकता कौन है गिरेबाँ में
आईना किस के रू-ब-रू है यहाँ

मक़्तल-ए-आरज़ू है दिल 'वाजिद'
हर तमन्ना लहू लहू है यहाँ