मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ
एक से एक ख़ूब-रू है यहाँ
पुर है बाज़ार-ए-हुसन चेहरों से
जाने किस किस की आबरू है यहाँ
कैसे आबाद हो ये वीराना
वहशत-ए-किज़्ब चार-सू है यहाँ
आँख की पुतलियों को ग़ौर से देख
तेरी तस्वीर हू-ब-हू है यहाँ
कैसे तारीख़ लिक्खी जाएगी
सिर्फ़ तलवार और गुलू है यहाँ
तू कहाँ है ख़बर नहीं ऐ दोस्त
रात दिन तेरी गुफ़्तुगू है यहाँ
झाँकता कौन है गिरेबाँ में
आईना किस के रू-ब-रू है यहाँ
मक़्तल-ए-आरज़ू है दिल 'वाजिद'
हर तमन्ना लहू लहू है यहाँ
ग़ज़ल
मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ
वाजिद अमीर