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मस्ती अज़ल की शहपर-ए-जिबरील हो गई | शाही शायरी
masti azal ki shahpar-e-jibril ho gai

ग़ज़ल

मस्ती अज़ल की शहपर-ए-जिबरील हो गई

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

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मस्ती अज़ल की शहपर-ए-जिबरील हो गई
मेरी बयाज़ परतव-ए-इंजील हो गई

दिल का गुदाज़ आह की तासीर देख कर
पत्थर की ज़ात काँप के तहलील हो गई

हर लफ़्ज़ कंकरी की तरह ग़ैर पर गिरा
अपनी दुआ फ़लक पे अबाबील हो गई

फ़िरऔन-ए-बे-करम जो हुआ माइल-ए-सितम
नद्दी मिरे लहू की वहीं नील हो गई

जाना था ज़ूद-तर मुझे मैदान-ए-हश्र में
या शग़्ल-ए-हादसात में ही ढील हो गई