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मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ | शाही शायरी
mast nazron ka iltifat na puchh

ग़ज़ल

मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ

वक़ार बिजनोरी

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मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ
झूम उठी दिल की काएनात न पूछ

अपनी नज़रों की कैफ़ियात न पूछ
मुस्कुरा दी मिरी हयात न पूछ

इश्क़ में हर क़दम है इक मंज़िल
राह-ए-उल्फ़त की मुश्किलात न पूछ

मैं हूँ और आप का तसव्वुर है
अब मिरी रौनक़-ए-हयात न पूछ

जैसे हर लहज़ा देखते हो मुझे
मिरी मश्क़-ए-तसव्वुरात न पूछ

हर्फ़-ए-मतलब ज़बाँ पे ला न सका
दिल में अब तक है दिल की बात न पूछ

हिज्र का हाल क्या बताएँ 'वक़ार'
कैसे दिन गुज़रा कैसे रात न पूछ