मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ 
झूम उठी दिल की काएनात न पूछ 
अपनी नज़रों की कैफ़ियात न पूछ 
मुस्कुरा दी मिरी हयात न पूछ 
इश्क़ में हर क़दम है इक मंज़िल 
राह-ए-उल्फ़त की मुश्किलात न पूछ 
मैं हूँ और आप का तसव्वुर है 
अब मिरी रौनक़-ए-हयात न पूछ 
जैसे हर लहज़ा देखते हो मुझे 
मिरी मश्क़-ए-तसव्वुरात न पूछ 
हर्फ़-ए-मतलब ज़बाँ पे ला न सका 
दिल में अब तक है दिल की बात न पूछ 
हिज्र का हाल क्या बताएँ 'वक़ार' 
कैसे दिन गुज़रा कैसे रात न पूछ
        ग़ज़ल
मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ
वक़ार बिजनोरी

