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मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं | शाही शायरी
maskan wahin kahin hai wahin aashiyan kahin

ग़ज़ल

मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं
दो आड़े सीधे रख लिए तिनके जहाँ कहीं

फूलों की सेज फूलों की हैं बद्धियाँ कहीं
काँटों पे हम तड़पते हैं ओ आसमाँ कहीं

जाते किधर हो तुम सफ़-ए-महशर में ख़ैर है
दामन न हो ख़ुदा के लिए धज्जियाँ कहीं

पहरा बिठा दिया है ये क़ैद-ए-हयात ने
साया भी साथ साथ है जाऊँ जहाँ कहीं

बस मुझ को दाद मिल गई मेहनत वसूल है
सुन ले ग़ज़ल ये बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ कहीं

'शाइर' वो आज फिर वहीं जाते हुए मिले
दुश्मन के सर पे टूट पड़े आसमाँ कहीं