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मशहूर हैं दिनों की मिरे बे-क़रारियाँ | शाही शायरी
mashhur hain dinon ki mere be-qarariyan

ग़ज़ल

मशहूर हैं दिनों की मिरे बे-क़रारियाँ

मीर तक़ी मीर

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मशहूर हैं दिनों की मिरे बे-क़रारियाँ
जाती हैं ला-मकाँ को दिल-ए-शब की ज़ारियाँ

चेहरे पे जैसे ज़ख़्म है नाख़ुन का हर ख़राश
अब दीदनी हुई हैं मिरी दस्त-कारीयाँ

सौ बार हम ने गुल के गए पर चमन के बीच
भर दी हैं आब-ए-चश्म से रातों को कियारियाँ

कुश्ते की उस के ख़ाक भरे जिस्म-ए-ज़ार पर
ख़ाली नहीं हैं लुत्फ़ से लोहू की धारियाँ

तुर्बत से आशिक़ों के न उठा कभू ग़ुबार
जी से गए वले न गईं राज़-दारीयाँ

अब किस किस अपनी ख़्वाहिश-ए-मुर्दा को रोइए
थीं हम को इस से सैंकड़ों उम्मीदवारियाँ

पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख़्तों को लोग
मुद्दत रहेंगी याद ये बातें हमारीयाँ

क्या जानते थे ऐसे दिन आ जाएँगे शिताब
रोते गज़रतियाँ हैं हमें रातें सारियाँ

गुल ने हज़ार रंग-ए-सुख़न सर किया वले
दिल से गईं न बातें तिरी प्यारी प्यारियाँ

जाओगे भूल अहद को फ़रहाद-ओ-क़ैस के
गर पहुँचें हम शिकस्ता-दिलों की भी बारियां

बच जाता एक रात जो कट जाती और 'मीर'
काटें थीं कोहकन ने बहुत रातें भारीयाँ