मसअले का हल न निकला देर तक
रात-भर जाग भी सोचा देर तक
मुस्कुरा कर उस ने देखा देर तक
दिल हमारा आज धड़का देर तक
आप आए हैं तो ये आया ख़याल
बाम पर क्यूँ पंछी चहका देर तक
टूटते ही उन से उम्मीद-ए-वफ़ा
दिल हमारा फिर न धड़का देर तक
फूल अपने रस से वंचित हो गया
फूल पर भँवरा जो बैठा देर तक
खुल गया उस की वफ़ाओं का भरम
दे न पाया मुझ को धोका देर तक
नाज़ से वो ज़ुल्फ़ सुलझाते रहे
छत पे मेरी चाँद चमका देर तक
जिस जगह इंसान की इज़्ज़त न हो
उस जगह फिर क्या ठहरना देर तक
ख़ूब रोया मैं किसी की याद में
अब की बादल ख़ूब बरसा देर तक
चल दिया वो सब को तन्हा छोड़ कर
काश वो दुनिया में रहता देर तक
वो छुड़ा कर अपना दामन चल दिए
रह गया मैं हाथ मलता देर तक
ज़हर से लबरेज़ साग़र का मज़ा
प्यार में हम ने भी चक्खा देर तक
ये ज़माना बेवफ़ा है 'नूर'-जी
कब किसी का साथ देगा देर तक
ग़ज़ल
मसअले का हल न निकला देर तक
श्याम सुन्दर नंदा नूर