EN اردو
मरने का सुख जीने की आसानी दे | शाही शायरी
marne ka sukh jine ki aasani de

ग़ज़ल

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

;

मरने का सुख जीने की आसानी दे
अनदाता कैसा है आग न पानी दे

इस धरती पर हरियाली की जोत जगा
काले मेघा पानी दे गर्दानी दे

बंद अफ़्लाक की दीवारों में रौज़न कर
कोई तो मंज़र मुझ को इम्कानी दे

मेरे दिल पर खोल किताबों के असरार
मेरी आँख को अपनी साफ़ निशानी दे

अर्ज़ ओ समा के पस-मंज़र से सामने आ
दिल को यक़ीं दे आँखों को हैरानी दे

मेरे होने मेरे न होने में क्या है
मौत को मफ़्हूम इस हस्ती को मआ'नी दे

बरकत दे दिन फेरने वाली दुआओं को
रात को कोई ख़ुश-ताबीर कहानी दे

टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
आँखों को ठंडक ख़्वाबों को गिरानी दे

मुझ को जहाँ के सातों सुख देने वाले
देना है तो कोई दौलत ला-फ़ानी दे

तुझ से जुदा हो कर तो मैं मर जाऊँगा
मुझ को अपना सर ऐ दोस्त निशानी दे

इक इक पत्थर राह का 'ज़ेब' हटाता चल
पीछे आने वालों को आसानी दे