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मरहले ज़ीस्त के दुश्वार नहीं दीवानो | शाही शायरी
marhale zist ke dushwar nahin diwano

ग़ज़ल

मरहले ज़ीस्त के दुश्वार नहीं दीवानो

मंज़र अय्यूबी

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मरहले ज़ीस्त के दुश्वार नहीं दीवानो
मावरा-ए-रसन-ओ-दार नहीं दीवानो

क्या करोगे दिल-ए-पुर-ख़ूँ की हिकायत सुन कर
ये हदीस-ए-लब-ओ-रुख़्सार नहीं दीवानो

आज क्यूँ पंद-गर-ए-वक़्त की तक़रीरों में
लज़्ज़त-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार नहीं दीवानो

खाका-ए-ज़ेहन पे उभरे तो कोई नक़्श-ए-जमील
बंद दरवाज़ा-ए-इंकार नहीं दीवानो

क्या करोगे मह-ओ-अंजुम पे जमा कर नज़रें
मेहर-ए-गेती ही ज़िया-बार नहीं दीवानो

पुर्सिश-ए-हाल में एहसास-ए-तकल्लुफ़ कैसा
कोई साया पस-ए-दीवार नहीं दीवानो

कोई रौशन तो करे शम-ए-शबिस्तान-ए-ख़याल
मुंजमिद चश्मा-ए-अनवार नहीं दीवानो