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मरहले सख़्त इम्तिहान के हैं | शाही शायरी
marhale saKHt imtihan ke hain

ग़ज़ल

मरहले सख़्त इम्तिहान के हैं

महशर बदायुनी

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मरहले सख़्त इम्तिहान के हैं
चल पड़े हम भी सीना तान के हैं

आसमाँ ज़ेर-ए-पर हैं जो ताइर
मेरी ही सतह की उड़ान के हैं

मुश्तइल रहने दें इन्हें कि बुझाएँ
ये चराग़ अपने ही मकान के हैं

कौन कहता है शब को शब न कहो
कुछ क़रीने भी तो ज़बान के हैं

आदमी अब कहाँ ज़मीं पे रहे
सब फ़रिश्ते ही आसमान के हैं

जिन के शब-ख़ूँ से है दुखी ये ज़मीं
जाने वो लोग किस जहान के हैं

ज़द पे हम हैं तो ज़द पे तुम भी हो
तीर हम भी कड़ी कमान के हैं