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मरहले ऐसे भी अक्सर आए | शाही शायरी
marhale aise bhi aksar aae

ग़ज़ल

मरहले ऐसे भी अक्सर आए

रियासत अली ताज

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मरहले ऐसे भी अक्सर आए
फूल बरसाए तो पत्थर आए

इक फ़क़त आप के हो जाने से
कितने इल्ज़ाम मेरे सर आए

जाम ठुकरा दिए जब भी मैं ने
सामने मेरे समुंदर आए

एक चेहरे पे बशारत न मिली
अन-गिनत चेहरों को पढ़ कर आए

भूल जाते हैं परिंदे माँ को
जब भी उड़ने को ज़रा पर आए

आप का शहर कि था शहर-ए-अदब
बे-अदब इस में भी कुछ दर आए

इश्क़ में 'ताज' कशिश हो ऐसी
ख़ुद ही महबूब तड़प कर आए