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मर रहते हैं दर पर तिरे दो-चार हमेशा | शाही शायरी
mar rahte hain dar par tere do-chaar hamesha

ग़ज़ल

मर रहते हैं दर पर तिरे दो-चार हमेशा

जोशिश अज़ीमाबादी

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मर रहते हैं दर पर तिरे दो-चार हमेशा
है जौर-ओ-जफ़ा तुझ को सज़ा-वार हमेशा

आशिक़ तिरा मरने को है तय्यार हमेशा
दिखला न मिज़ा ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़ार हमेशा

इक छेड़ निकाले है नई यार हमेशा
रहता है मिरे दर-पए-आज़ार हमेशा

अल्लाह सलामत रखे तेरे लब-ए-शीरीं
सुनवाया करे बातें मज़ेदार हमेशा

है डर से तिरे आलम-ए-बाला तह-ओ-बाला
लटके है तिरी अर्श पे तलवार हमेशा

जूँ हल्क़ा-ए-दर दर पे तिरे सुब्ह से ता-सुब्ह
रहता है तिरा तालिब-ए-दीदार हमेशा

इज़हार करूँ जिस से मैं अहवाल को अपने
अहवाल-ए-तबाह उस का रहे यार हमेशा