मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात
मगर इतना है कि ज़ंजीर बदल जाती है
असर-ए-इश्क़ तग़ाफ़ुल भी है बेदाद भी है
वही तक़्सीर है ताज़ीर बदल जाती है
कहते कहते मिरा अफ़्साना गिला होता है
देखते देखते तक़दीर बदल जाती है
रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है
घर में रहता है तिरे दम से उजाला ही कुछ और
मह ओ ख़ुर्शीद की तनवीर बदल जाती है
ग़म नसीबों में है 'फ़ानी' ग़म-ए-दुनिया हो कि इश्क़
दिल की तक़दीर से तदबीर बदल जाती है
ग़ज़ल
मर के टूटा है कहीं सिलसिला-क़ैद-ए-हयात
फ़ानी बदायुनी