मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं
हम जान दे के दिल को सँभाले हुए तो हैं
बे-ज़ार हो न जाए कहीं ज़िंदगी से दिल
तासीर से ख़फ़ा मिरे नाले हुए तो हैं
रिसते हैं अब के साल कि बहते हैं देखिए
फिर फ़स्ल-ए-गुल में ज़ख़्म-ए-दिल आले हुए तो हैं
अरमाँ जो यूँ नहीं तो निकलते हैं किस तरह
यानी हमारे दिल से निकाले हुए तो हैं
हाँ दर्द-ए-इश्क़ उन पे करम की नज़र रहे
सब्र ओ क़रार तेरे हवाले हुए तो हैं
ये सोहबतें भी देखिए लाती हैं रंग क्या
मेहमान ख़ार पाँव के छाले हुए तो हैं
क्या जानिए कि हश्र हो क्या सुब्ह-ए-हश्र का
बेदार तेरे देखने वाले हुए तो हैं
'फ़ानी' तिरे अमल हमा-तन जब्र ही सही
साँचे में इख़्तियार के ढाले हुए तो हैं
ग़ज़ल
मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं
फ़ानी बदायुनी