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मर कर भी छूटती नहीं अक्सर लगी हुई | शाही शायरी
mar kar bhi chhuTti nahin akasr lagi hui

ग़ज़ल

मर कर भी छूटती नहीं अक्सर लगी हुई

मज़ाक़ बदायुनी

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मर कर भी छूटती नहीं अक्सर लगी हुई
होती बहुत बरी है मुक़र्रर लगी हुई

इस शोला-रू को लाग है हर दिल से क्या बुझे
है सब घरों में आग बराबर लगी हुई

दिल की ख़बर जो आती है हर दम ज़बान पर
रहती है दम की डाक बराबर लगी हुई

सोज़-ए-दरूँ ने फूँक दिया जिस्म ओ जान ओ दिल
इक आग है कलेजा के अंदर लगी हुई

भूले हैं ज़ौक़-ए-मय से 'मज़ाक़' अपनी जाँ तो क्या
दिल से है याद-ए-साक़ी-ए-कौसर लगी हुई