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मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे | शाही शायरी
mar bhi jaun to kahan log bhula hi denge

ग़ज़ल

मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे

परवीन शाकिर

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मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
लफ़्ज़ मेरे मिरे होने की गवाही देंगे

लोग थर्रा गए जिस वक़्त मुनादी आई
आज पैग़ाम नया ज़िल्ल-ए-इलाही देंगे

झोंके कुछ ऐसे थपकते हैं गुलों के रुख़्सार
जैसे इस बार तो पत-झड़ से बचा ही देंगे

हम वो शब-ज़ाद कि सूरज की इनायात में भी
अपने बच्चों को फ़क़त कोर-निगाही देंगे

आस्तीं साँपों की पहनेंगे गले में माला
अहल-ए-कूफ़ा को नई शहर-पनाही देंगे

शहर की चाबियाँ आदा के हवाले कर के
तोहफ़तन फिर उन्हें मक़्तूल सिपाही देंगे