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मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा | शाही शायरी
manzilon ka main pata bhi dunga

ग़ज़ल

मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा

इकराम तबस्सुम

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मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा
ख़ुद को रस्ते से हटा भी दूँगा

इतना एहसान-फ़रामोश नहीं
बेवफ़ाई का सिला भी दूँगा

अपनी हसरत तो वो पूरी कर ले
दुश्मन-ए-जाँ को दुआ भी दूँगा

पहले दरवाज़े पे दस्तक दे लूँ
फिर ये दीवार गिरा भी दूँगा

ज़िंदगी जुर्म तो आएद कर दे
बे-गुनाही को सज़ा भी दूँगा

क़त्ल भी मैं ही करूँगा ख़ुद को
और फिर ख़ून-बहा भी दूँगा

आग भड़केगी 'तबस्सुम' अपनी
यानी शोलों को हवा भी दूँगा