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मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा | शाही शायरी
manzilen lakh kaThin aaen guzar jaunga

ग़ज़ल

मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा

साक़ी अमरोहवी

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मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा
हौसला हार के बैठूँगा तो मर जाऊँगा

चल रहे थे जो मेरे साथ कहाँ हैं वो लोग
जो ये कहते थे कि रस्ते में बिखर जाऊँगा

दर-ब-दर होने से पहले कभी सोचा भी न था
घर मुझे रास न आया तो किधर जाऊँगा

याद रक्खे मुझे दुनिया तिरी तस्वीर के साथ
रंग ऐसे तिरी तस्वीर में भर जाऊँगा

लाख रोकें ये अँधेरे मिरा रस्ता लेकिन
मैं जिधर रौशनी जाएगी उधर जाऊँगा

रास आई न मोहब्बत मुझे वर्ना 'साक़ी'
मैं ने सोचा था कि हर दिल में उतर जाऊँगा