मंज़र समेट लाए हैं जो तेरे गाँव के
नींदें चुरा रहे हैं वो झोंके हवाओं के
तेरी गली से चाँद ज़ियादा हसीं नहीं
कहते सुने गए हैं मुसाफ़िर ख़लाओं के
पल भर को तेरी याद में धड़का था दिल मिरा
अब दूर तक भँवर से पड़े हैं सदाओं के
दाद-ए-सफ़र मिली है किसे राह-ए-शौक़ में
हम ने मिटा दिए हैं निशाँ अपने पाँव के
जब तक न कोई आस थी ये प्यास भी न थी
बेचैन कर गए हमें साए घटाओं के
हम ने लिया है जब भी किसी राहज़न का नाम
चेहरे उतर उतर गए कुछ रहनुमाओं के
उगलेगा आफ़्ताब कुछ ऐसी बला की धूप
रह जाएँगे ज़मीन पे कुछ दाग़ छाँव के
ग़ज़ल
मंज़र समेट लाए हैं जो तेरे गाँव के
क़तील शिफ़ाई