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मंज़र का एहसान उतारा जा सकता है | शाही शायरी
manzar ka ehsan utara ja sakta hai

ग़ज़ल

मंज़र का एहसान उतारा जा सकता है

ओसामा ज़ाकिर

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मंज़र का एहसान उतारा जा सकता है
आँख को यारा भूका मारा जा सकता है

आँगन आँगन आग उगाई जा सकती है
कमरों में दरिया का किनारा जा सकता है

किरची किरची ख़्वाब चमकता है आँखों में
उन से अब दुनिया को सँवारा जा सकता है

बूंदों में आइने घोले जा सकते हैं
चादर-ए-तन में सफ़र गुज़ारा जा सकता है

जिस्म-ओ-दिल की ठन जाने पर याद रखो
जिस्म को जीतो दिल तो हारा जा सकता है

जिस बस्ती के राशन घर में ख़ून बँटे
वहाँ फ़क़त लाशों को सँवारा जा सकता है

जिस आँगन की सांवलियाँ रोटी जीतें
उस के तवे पर चाँद उतारा जा सकता है

आतिश-दाँ का सीना ठंडा हो सकता है
बर्फ़ का टुकड़ा बन के शरारा जा सकता है