मन की मय हो तो पियाले नहीं देखे जाते
इश्क़ हो जाए तो चेहरे नहीं देखे जाते
मैं बिगड़ते हुए बच्चों को भी कब डाँटता हूँ
मुझ से रोते हुए बच्चे नहीं देखे जाते
हमला-आवर को मैं अब ख़ुद ही रियासत दे दूँ
अपने लोगों पे ये हमले नहीं देखे जाते
तैरना आता है तो छोड़ मुझे तू तो निकल
मौक़ा ऐसा हो तो वा'दे नहीं देखे जाते
उस की ख़ामोशी अँधेरे का सबब बनती है
मुझ से अब और अँधेरे नहीं देखे जाते
अपने कश्मीरी लबों से तू गिरा शर्म के बंद
डूबने वक़्त किनारे नहीं देखे जाते
मैं कोई हाथ भी थामूँ तो ये दिल थमता है
मुझ से क़िस्मत के सितारे नहीं देखे जाते
ग़ज़ल
मन की मय हो तो पियाले नहीं देखे जाते
वक़ार ख़ान