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मन जिस का मौला होता है | शाही शायरी
man jis ka maula hota hai

ग़ज़ल

मन जिस का मौला होता है

अली ज़रयून

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मन जिस का मौला होता है
वो बिल्कुल मुझ सा होता है

आँखें हंस कर पूछ रही हैं
नींद आने से क्या होता है

मिट्टी की इज़्ज़त होती है
पानी का चर्चा होता है

जानता हूँ मंसूर को भी मैं
अपने ही घर का होता है

अच्छी लड़की ज़िद नहीं करते
देखो इश्क़ बुरा होता है

वहशत का इक गुर है जिस में
क़ैस अपना बच्चा होता है

बाज़-औक़ात मुझे दुनिया पर
दुनिया का भी शुबह होता है

तुम मुझ को अपना कहते हो
कह लेने से क्या होता है