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मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं | शाही शायरी
malal hote hue dil pe kuchh malal nahin

ग़ज़ल

मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

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मलाल होते हुए दिल पे कुछ मलाल नहीं
ख़याल-ए-दोस्त से अच्छा कोई ख़याल नहीं

जिसे ज़वाल न हो वो कोई कमाल नहीं
कमाल-ए-ग़म को हमारे मगर ज़वाल नहीं

जफ़ाएँ कर के जो वो सुस्त सुस्त बैठे हैं
उन्हें मलाल ये है मुझ को कुछ मलाल नहीं

ये क्या नहीं निगह-ए-फ़ित्ना-साज़ तेरी कमी
हमारे जज़्बा-ए-ग़म में अब इश्तिआ'ल नहीं

कहो ग़मों से कि बे-फ़िक्र अब दिलों में रहें
ख़ुशी का आज की दुनिया में एहतिमाल नहीं

ये और बात तरस ही न हो किसी दिल में
छुपा हुआ तो ज़माने से मेरा हाल नहीं

गिरी जो बर्क़ तो अपना बना रहा है मुझे
ये क्या है 'अश्क' अगर बाग़बाँ की चाल नहीं